सभी विद्यार्थियों ने समय पर परीक्षा दी, परिणाम तैयार हुए और समय पर दीक्षांत समारोह का आयोजन भी हुआ। यह विश्वविद्यालय की अनुशासित और समर्पित कार्यप्रणाली को दर्शाता है।
राज्यपाल जी ने विद्यार्थियों से कहा कि वे केवल सिलेबस तक सीमित न रहें, बल्कि उससे बाहर की पुस्तकें भी पढ़ें। उन्होंने कहा कि “आपके हाथों में भारत के भविष्य की दिशा है। इसलिए संकल्प कीजिए कि आप ‘राष्ट्र प्रथम’ की भावना से कार्य करेंगे। आने वाले 25 वर्ष युवाओं के हैं, इन्हीं वर्षों में ‘विकसित भारत’ का निर्माण होना है। हमारे प्रधानमंत्री जी ने युवाओं पर भरोसा जताया है कि वे ही देश की नींव को सुदृढ़ करेंगे और भारत को विश्व पटल पर गौरवान्वित करेंगे।”
राज्यपाल जी ने कहा कि भारत ऋषि-मुनियों की भूमि है, हमारे महान ऋषियों ने अपने लेखन और शोध कार्यों से जो अमूल्य ज्ञान दिया है, उसे पढ़ना और समझना युवाओं का दायित्व है। आज विद्यार्थियों के पास अत्याधुनिक सुविधाएँ हैं, जिनका सही उपयोग कर वे अपने जीवन को उज्ज्वल बना सकते हैं।
राज्यपाल जी ने कहा कि रोजगार ही जीवन का एकमात्र लक्ष्य नहीं होना चाहिए। राष्ट्र सेवा, समाज उत्थान और मानवता की भलाई ही शिक्षा का सर्वोच्च उद्देश्य होना चाहिए। टेक्नोलॉजी आने से रोजगार के स्वरूप में परिवर्तन हुआ है, अतः युवाओं को आत्मनिर्भर बनने की दिशा में कार्य करना चाहिए और नए-नए कौशल सीखने का प्रयास करना चाहिए। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 इसी दिशा में एक सशक्त कदम है, जो शिक्षा को राष्ट्रीय मूल्यों, सांस्कृतिक धरोहर और रोजगार, तीनों से जोड़ती है। यह नीति विद्यार्थियों को तकनीकी चुनौतियों के अनुरूप तैयार करती है और उन्हें कुशल, आत्मनिर्भर, नैतिक एवं राष्ट्रनिष्ठ नागरिक बनने के लिए प्रेरित करती है।
उन्होंने कहा कि आज के कार्यक्रम में छोटे बच्चों ने भी नवाचार और कौशल में अद्भुत प्रतिभा दिखाया। शिक्षकों का यह कर्तव्य है कि वे विद्यार्थियों को केवल पुस्तक ज्ञान तक सीमित न रखें, बल्कि उन्हें विभिन्न रचनात्मक और सामाजिक गतिविधियों में भी सम्मिलित करें। ऐसे विद्यार्थी ही भारत का भविष्य हैं। बच्चों को मानसिक, शारीरिक, संवेदनात्मक और आध्यात्मिक रूप से सशक्त बनाना आवश्यक है। बेटियों को सशक्त बनाना विशेष रूप से आवश्यक है क्योंकि वे राष्ट्र निर्माण की आधारशिला हैं। उन्होंने कहा कि भारत ने अनेकों वैश्विक चुनौतियों का डटकर सामना किया है, और आने वाले समय में भी हमारे युवाओं को उसी साहस और आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ना होगा।
राज्यपाल जी ने स्वदेशी अपनाने और ऑर्गेनिक खेती को प्रोत्साहित करने की प्रेरणा भी दी। उन्होंने विद्यार्थियों से कहा कि वे अपने परिवार के लिए जैविक खेती (ऑर्गेनिक फार्मिंग) करें और जैविक उत्पादों का ही प्रयोग करें। उन्होंने निर्देश दिया कि प्रदेश के सभी कृषि विश्वविद्यालयों में इस विषय को एक प्रोजेक्ट या प्रैक्टिकल के रूप में शामिल किया जाए, ताकि विद्यार्थी अपने खेतों पर ऑर्गेनिक खेती का अभ्यास करें। उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे विद्यार्थियों को ही अवार्ड दिए जाएँ जो इस दिशा में वास्तविक कार्य करें। उन्होंने कहा कि जब हमारे युवा “स्वदेशी, आत्मनिर्भरता, और राष्ट्र सेवा” की भावना से प्रेरित होकर आगे बढ़ेंगे, तब ही प्रधानमंत्री जी का “विकसित भारत” का सपना साकार होगा। उन्होंने आह्वान किया कि हम सब मिलकर एक ऐसे नवभारत के निर्माण में योगदान दें, जहाँ हर हाथ सृजन का प्रतीक बने, हर मस्तक विचार का दीपक बने, और हर हृदय प्रेम एवं संवेदना की ज्योति से आलोकित हो।
राज्यपाल जी ने कहा कि माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा हाल ही में 60,000 करोड़ रूप्ये की “पी०एम० सेतु योजना” का शुभारंभ किया गया है, जो केवल एक योजना नहीं, बल्कि कौशल और उद्योग के बीच सेतु निर्माण का राष्ट्रीय संकल्प है। यह पहल देशभर के औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (आई०टी०आई०) को सीधे उद्योग जगत से जोड़कर युवाओं के हाथों में रोजगार का औज़ार और आत्मनिर्भरता का आधार प्रदान करेगी। यह “सेतु” शिक्षा और उत्पादन, प्रशिक्षण और अवसर, श्रम और सम्मान के बीच की दूरी को मिटाने वाला विकास का सशक्त सेतु बनेगा। उन्होंने विश्वविद्यालयों एवं आई०टी०आई० संस्थानों को निर्देश दिए कि वे इस योजना के अनुरूप नवाचार आधारित निर्माता प्रोजेक्ट तैयार कर सबमिट करें, ताकि विद्यार्थियों को इसका वास्तविक लाभ प्राप्त हो सके।
उन्होंने कहा कि यह पहल भारत के युवाओं को केवल कामगार नहीं बनाएगी, बल्कि उन्हें नवाचार के शिल्पी और विकास के वास्तुकार के रूप में स्थापित करेगी। “पी०एम० सेतु योजना” भारत के श्रम को सम्मान, कौशल को सामर्थ्य और युवाओं को उज्ज्वल भविष्य का द्वार प्रदान करने वाली युगांतरकारी पहल है।
राज्यपाल जी ने जिलों के अधिकारियों को भी निर्देशित किया कि भारत सरकार और राज्य सरकार की इस प्रकार की सभी योजनाओं का गहराई से अध्ययन करें और उनके लाभ प्रत्यक्ष रूप से युवाओं तक पहुँचाने के लिए ठोस कार्ययोजना बनाएं।
राज्यपाल जी ने आगे कहा कि प्रधानमंत्री जी द्वारा हाल ही में देशभर के नवोदय विद्यालयों और एकलव्य मॉडल विद्यालयों में 1200 स्किल लैब्स का उद्घाटन किया गया है। यह केवल एक औपचारिक उद्घाटन नहीं, बल्कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के लक्ष्यों को साकार करने की दिशा में प्रेरणादायक कदम है। यह योजना शिक्षा को केवल ज्ञान देने तक सीमित नहीं रखती, बल्कि उसे रोजगार, कौशल विकास और आत्मनिर्भरता से जोड़ने वाला सशक्त माध्यम बनाती है। आज भारत जिन नए शैक्षिक आयामों की ओर बढ़ रहा है, वे विद्यार्थियों को केवल पढ़ाई के मार्ग पर नहीं, बल्कि जीवन निर्माण के मार्ग पर अग्रसर करेंगे।
उन्होंने कहा कि इन स्किल लैब्स के माध्यम से हमारे विद्यालय अब केवल ज्ञान के मंदिर नहीं रहेंगे, बल्कि कौशल, नवाचार और आत्मनिर्भर भारत के निर्माण के केंद्र बनेंगे। यह पहल युवाओं को न केवल रोजगार के अवसरों के प्रति सक्षम बनाएगी, बल्कि उन्हें राष्ट्र के सृजनकर्ता और विकास के पथप्रदर्शक के रूप में स्थापित करेगी। उन्होंने कहा, “मेरे विचार में यह योजना केवल शिक्षा का भविष्य नहीं, बल्कि हमारे राष्ट्र का भविष्य है।”
राज्यपाल जी ने जनप्रतिनिधियों को निर्देश दिए कि वे अपने-अपने क्षेत्रों में यह सुनिश्चित करें कि जहाँ-जहाँ ये स्किल लैब्स स्थापित की गई हैं, वहाँ विद्यार्थियों और युवाओं को उनसे जोड़ा जाए, ताकि यह पहल अपने उद्देश्य को पूर्ण रूप से प्राप्त कर सके।
राज्यपाल जी ने विद्यार्थियों की उपस्थिति कम होने पर गहरी चिंता व्यक्त की और कहा कि भारत की शिक्षा व्यवस्था गुरु-शिष्य परंपरा पर आधारित रही है, जहाँ शिष्य अपने गुरु के सानिध्य में बैठकर केवल विषय ज्ञान ही नहीं, बल्कि जीवन के मूल्य और संस्कार भी सीखता था। उन्होंने कहा कि “जब शिष्य गुरु के चरणों में बैठकर पढ़ता है, तभी उसके जीवन में प्रकाश आता है।” शिक्षा तभी सार्थक होती है जब विद्यार्थी गुरु के सानिध्य में बैठकर न केवल पाठ्यक्रम से, बल्कि गुरुओं के अनुभव और जीवन मूल्यों से भी सीखते हैं। ज्ञान केवल पुस्तकों से नहीं, बल्कि संवाद, चिंतन और विचारों की गहराई से उपजता है, जो कक्षा में मिलती है। विद्यार्थियों की न्यूनतम 75 प्रतिशत उपस्थिति अनिवार्य की जानी चाहिए, और जिन विद्यार्थियों की उपस्थिति इससे कम हो, उन्हें परीक्षा में सम्मिलित न किया जाए। उन्होंने कहा कि माता-पिता की मेहनत और आशाओं को व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए, बल्कि उसका सकारात्मक परिणाम देना हर विद्यार्थी का कर्तव्य है।
राज्यपाल जी ने कहा कि विद्यालय केवल ज्ञान का केंद्र नहीं, बल्कि विचार, चरित्र और राष्ट्र निर्माण का केंद्र है। विश्वविद्यालय केवल डिग्रियों के वितरण का केंद्र नहीं होना चाहिए, बल्कि यह वह पवित्र भूमि है जहाँ से भविष्य के भारत का निर्माण होता है, जहाँ विद्यार्थियों के व्यक्तित्व को आकार मिलता है और राष्ट्रप्रेम की ज्वाला प्रज्वलित होती है।
राज्यपाल जी ने कुलपति को निर्देश दिए कि बच्चों की परीक्षाएं समय से हों, परिणाम समय से घोषित हों, और चूँकि यह नया विश्वविद्यालय है, इसलिए आरंभ से ही विद्यार्थियों में अच्छी आदतें और अनुशासन की भावना विकसित की जाए। उन्होंने बताया कि पहले विद्यार्थियों को अपनी डिग्रियाँ समय पर प्राप्त करने में कठिनाइयाँ आती थीं, लेकिने ‘डीजी लॉकर’ प्रणाली के प्रारंभ होने से अब विद्यार्थियों को उनकी उपाधियाँ आसानी से उपलब्ध हो रही हैं।
राज्यपाल जी ने अनुसंधान (रिसर्च) की दिशा में विश्वविद्यालयों को सक्रिय होने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि जो विश्वविद्यालय अब तक शोध परियोजनाएँ तैयार नहीं कर पाए हैं, वे शीघ्र परियोजनाएँ तैयार कर सरकार को भेजें। सरकार शोध को बढ़ावा देने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है।
उन्होंने यह भी बताया कि प्रदेश के 19 विश्वविद्यालयों को नैक में ग्रेडिंग प्राप्त हो चुकी है, जिनमें कृषि विश्वविद्यालय भी शामिल हैं। राज्यपाल जी ने विश्वविद्यालय को नैक, एनआईआरएफ और विश्व रैंकिंग की तैयारी करने के निर्देश दिए।
राज्यपाल जी ने विद्यार्थियों के बीच साइकिल रैली आयोजित करने का भी निर्देश दिया, ताकि उनमें फिटनेस, पर्यावरण संरक्षण और अनुशासन की भावना को प्रोत्साहन मिले। साथ ही, उन्होंने कुलपति को यह सुनिश्चित करने को कहा कि नशा जैसी प्रवृत्तियाँ विद्यार्थियों में जन्म न लें, इसके लिए विश्वविद्यालय प्रशासन अभी से सतर्कता बरते।
राज्यपाल जी की टीम ने विश्वविद्यालय परिसर का निरीक्षण किया। निरीक्षण के दौरान जो भी कमियाँ पाई गईं, उन्हें तत्काल दूर करने के निर्देश दिए गए। उन्होंने कहा कि विद्यार्थियों को विश्वविद्यालय के किचन में समय-समय पर शामिल किया जाए, ताकि वे स्वच्छता की आदत डालें और यह समझें कि स्वस्थ जीवन के लिए स्वच्छ भोजन आवश्यक है। उन्होंने सुझाव दिया कि विद्यार्थी महीने में एक बार अपना भोजन स्वयं तैयार करें। उन्होंने विश्वविद्यालय परिसर और छात्रावासों को स्वच्छ एवं सुव्यवस्थित रखने के भी निर्देश दिए।
राज्यपाल जी ने समाज में बेटियों के साथ हो रही प्रताड़ना और पारिवारिक हिंसा के प्रकरणों पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि इस विषय पर राजभवन स्वयं कार्य कर रहा है, समाज के सभी वर्गों को इस दिशा में संवेदनशीलता के साथ कार्य करने की आवश्यकता है। उन्होंने विश्वविद्यालयों को निर्देश दिया कि वे चरित्र निर्माण, महिला सम्मान और सामाजिक संवेदनशीलता पर विशेष कार्यक्रम आयोजित करें। विद्यार्थियों, विशेषकर छात्राओं को समाज की नकारात्मक प्रवृत्तियों और गंदगी से दूर रहकर स्वाभिमान, आत्मबल और संयम के साथ जीवन जीने की प्रेरणा दी जानी चाहिए। राज्यपाल जी ने छात्रों से भी आह्वान किया कि वे चरित्र निर्माण को सर्वोच्च लक्ष्य बनाएं और किसी भी प्रकार के अनुचित या गलत कार्य से स्वयं को दूर रखें।
राज्यपाल जी ने कहा कि “मैं नमन करती हूँ उस तपोभूमि को, जहाँ महर्षि दुर्वासा, भगवान दत्तात्रेय और चंद्रमा ऋषि जैसे महामनीषियों ने अपनी तपस्या से इस धरती को पवित्र किया। यह वही पुण्यभूमि है, जहाँ वीर कुंवर सिंह जैसे स्वतंत्रता सेनानियों की कर्मभूमि रही और जहाँ राजा बेनी माधव सिंह तथा परगण सिंह जैसे रणबांकुरों ने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी।” यह भूमि केवल ऐतिहासिक गौरव की प्रतीक नहीं है, बल्कि भारत की अमर संस्कृति, साहित्य और अध्यात्म की सुगंध से अनुप्राणित है। उन्होंने कहा कि महाकवि अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’, महा पंडित राहुल सांकृत्यायन और कैफ़ी आज़मी जैसे अमर साहित्यकारों को, जिन्होंने अपने लेखन से इस माटी की सुगंध को देश और विश्व तक पहुँचाया।”
राज्यपाल जी ने कहा कि यह विश्वविद्यालय उस महान योद्धा महाराजा सुहेलदेव के नाम पर स्थापित है, जिन्होंने भारत की अस्मिता और स्वाभिमान की रक्षा के लिए विदेशी आक्रांता महमूद गजनवी के सेनापति सैय्यद सालार मसूद गाज़ी को पराजित कर वीरता का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया। महाराजा सुहेलदेव का नाम केवल इतिहास का अध्याय नहीं, बल्कि राष्ट्रभक्ति, पराक्रम और स्वाभिमान का जीवंत प्रतीक है।
उन्होंने कहा कि दीक्षांत समारोह के मुख्य अतिथि परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश के अध्यक्ष, परम पूज्य स्वामी चिदानंद सरस्वती जी की उपस्थिति इस समारोह का गौरव बढ़ाने के साथ-साथ यहां उपस्थित सभी के हृदयों में आध्यात्मिक, नैतिक और सामाजिक चेतना का संचार करेगी। पूज्य स्वामी चिदानंद सरस्वती जी ने परमार्थ निकेतन के माध्यम से एक ऐसी अमूल्य परंपरा स्थापित की है, जो केवल आध्यात्मिक साधना तक सीमित नहीं, बल्कि मानवीय सेवा का विराट केंद्र बन चुकी है।
इस अवसर पर कुलाधिपति जी ने विश्वविद्यालय द्वारा गोद लिए गए ग्रामों में आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताओं में विजयी विद्यार्थियों को पुरस्कार प्रदान किए। उन्होंने विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालयों के प्राध्यापकों द्वारा लिखित पुस्तकों का विमोचन किया तथा विश्वविद्यालय परिसर में संपन्न विभिन्न निर्माण कार्यों का ऑनलाइन उद्घाटन किया। उन्होंने जनपद के जिलाधिकारी तथा मुख्य विकास अधिकारी को राजभवन से प्रकाशित पुस्तकें भेंट कीं। इसके अतिरिक्त, राज्यपाल जी ने राजभवन की ओर से विश्वविद्यालय को प्राप्त बस तथा नवनिर्मित बास्केटबॉल कोर्ट का निरीक्षण किया। नवनिर्मित परिसर में उन्होंने दर्शन एवं पूजन भी किया।