गाय में विराजमान पवित्रता ही हमारे जीवन की पूंजी हे:अविमुक्तेश्वरानंद
हिंदुस्तान न्यूज़ एक्सप्रेस गया बिहार ।गौमाता के प्राणों की रक्षा एवं गौमाता को राष्ट्रमाता घोषित कराने हेतु अडिग परमाराध्य परमधर्माधीश ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगदगुरू शंकराचार्य स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानंद: सरस्वती जी महाराज गौमतदाता संकल्प यात्रा के अंतर्गत गया में आयोजित गौमतदाता संकल्प सभा मे स्वतःस्फूर्त उपस्थित हजारों गौभक्त सनातनधर्मियों के समक्ष अपना उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि जैसे प्रकाश के हटने से सर्वत्र अंधकार छा जाता है ठीक उसी प्रकार पवित्रता के हट जाने से हम अपवित्र होजाते हैं।गाय पवित्रता की प्रतिमूर्ति हैं,हम स्नान के समय अथवा भगवन्नाम संकीर्तन के समय पवित्र रहते बांकी समय शुद्ध नही रहते,शास्त्रीय मान्यता के अनुसार हमारा दाहिना कान सदा पवित्रता रहता है,हमारी पवित्रता अस्थिर है आती-जाती रहती है।लेकिन गौमाता सर्वथा पवित्रतम है यहां तक कि उनका मल-मूत्र भी अत्यंत पवित्र होता है।इसलिए बडे बडे सन्त महापुरुष गौ की रक्षा के लिए तत्पर रहते हैं यदि गाय नही रही तो हम पवित्र व पापमुक्त कैसे होंगे?
परमधर्माधीश श्रीशंकराचार्य जी महाराज ने कहा कि प्रत्यक्ष भगवान सूर्य की हजारों किरणों में मुख्य किरण प्रकाश प्रदान करने वाला है।ये प्रकाश ही ज्ञान है,बिना ज्ञान के व्यवहार करना संभव नही है।हजारों किरणों में प्रकाश,पोषण और आयुष्य ये तीन प्रमुख किरण हैं।प्रकाश को आंखे पकडती हैं,धरती पोषण की किरण को और गाय माता आयुष्य की किरण को अपने कंधे के ककुद से धारण करती हैं।उनसे हमें दूध- दही और घृत मिलता है।प्रतिदिन शुद्ध घृत के सेवन से आयुष्य की प्राप्ति होती थी।पहले पत्तल में गौघृत के बाद ही कुछ और परोसने का नियम था।पाप यदि हड्डी में भी चला जाए तो पंचगव्य के प्राशन से हम उस पाप से भी मुक्त हो जाते हैं।अपवित्र को पवित्र करने वाली हैं गौमाता जहां उपस्थित हो वहां रोग और पाप नहीं सकता है।हमारे ज्ञानी पूर्वज इस बात को समझकर ही गौपालन करते थे।
श्रीशंकराचार्य जी ने कहा कि सतयुग में राजा गय ने भगवान विष्णु की आराधना की और सर्वथा पवित्र होकर पवित्रता की जीवन्त मूर्ति हो गए।पवित्र शरीर और मन से उनकी आसक्ति हो गई,उन्होने भगवान से कहा जो मेरा सेवन करे वो भी पवित्र हो जाए,भगवान ने ऐसा ही आशीर्वाद दे दिया।शरीर से मोह आसुरी प्रवृत्ति है,गय राजा की आसक्ति शरीर में हो गई इसलिए राजा गय की असुर संज्ञा हो गई।पवित्र गयासुर के दर्शन से सभी दुष्ट पवित्र होने लग गए,यमराज का दरबार खाली होने लग गया।चिन्तित देवगण ब्रह्मा जी के पास गए और देवताओं ने उनके द्वारा दी गई नीति का अनुसरण करते हुए गयासुर से यज्ञ के लिए उनका शरीर मांग लिया।और उस भूमि पर यज्ञ किया जिससे वह भूमि पवित्र हो गई।और भगवान प्रसन्न हुए तथा मांगने पर वरदान दिया कि जो भी इस गया कि भूमि पर आकर तर्पण करेगा उसे मुक्ति की प्राप्ति हो जाएगी।गाय और गया दोनो पवित्र हैं,गया कि पवित्र धरती पर बैठकर हम समस्त सनातनधर्मियों को धर्मादेश देते हैं कि गौरक्षा हेतु आपको कृतसंकल्पित आगे बढ़ना होगा।हिन्दु धर्म समाप्ति के कगार पर है।चोटी, तिलक,कांछ अब कुछ भी हमारे पास नही रहा।समलैंगिकता अब अपराध नही,अश्लीलता को बढ़ावा दिया जा रहा है।जिससे हमारी संस्कृति नष्ट होती चली जा रही है।ऐसे विपरीत प्ररिस्थिति में हम धर्म बचाने की जिम्मेदारी का परिपालन करने हेतु निकले है।बिहार क्रांति की धरती है चाहे आचार्य चाणक्य रहे हों या जयप्रकाश जब जरूरत पडी सत्ता को समय समय पर पलट दिया है।सच्चे सन्तों ने अपना आशीर्वाद सदैव सच्चे लोगों को ही दिया है।
उक्त जानकारी देते हुए श्रीशंकराचार्य जी महाराजश्री के मीडिया प्रभारी संजय पाण्डेय ने बताया कि कल सायंकाल गया पहुचने पर भगवद्भक्त श्री डालमिया जी के पर शंकराचार्य भगवान के चरण पादुका का पूजन हुआ।शंकराचार्य जी महाराज ने रात्रि विश्राम रामानुज मठ में हुआ।साथ ही पंजाबी धर्मशाला में भी मेहरबार परिवार के भक्तों द्वारा भी शंकराचार्य जी महाराज के चरणपादुका का पूजन कर उनकी आरती उतारी गई।
गौमतदाता संकल्प यात्रा में प्रमुख रूप से सर्वश्री-गौसंकल्प यात्रा के संयोजक स्वामी प्रत्यक्चैतन्यमुकुंदानंद गिरी जी महाराज,सहसंयोजक देवेंद्र पाण्डेय,स्वामी श्रीनिधिररव्यानंद,शैलेन्द्र योगी सहित भारी संख्या में लोग उपस्थित थे।